الأحد، 10 مارس 2024

امطرتني / بقلم / احمدعمر اللحوري

 امطرتني

بعينيها..
وزادتني..
شوق..
وولعة..
اسفرتني..
بعيد..
إلى..
بحور..
وهي..
تراقبني..
رافقني..
النورس..
وساعية..
الهجران...
بحر..
وسماء..
معبده..
بالنجوم...
غريب..
في بحور..
الحب..
شديد...
العذاب..
كيف..
امصرها..
غادرتني..
جميلة..
الفؤاد..
الروح..
يسال..
والعين..
لها دامع..
فراقها..
اوحشني..
لحسن..
جمالها..
عصبية..
مزاجية..
الكلام..
رحل العمر..
واللقاء..
لايعود..
قصر..
رجله..
وعيناه..
مغمظة...
أيا جارت..
قلبي..
ومهجتي..
صرت..
لا أدري..
أين..
من قلبكم..
موقعي..
رسيت..
ولم أدري...
بما أردتني..
إليكم..
تعاندني..
نجوم..
كانت..
إليه..
مشرقات..
بها نتردي..
ومنها نستقي..
عودي..
بناء..
يا ليالي..
إلى الفناء..
طيب الربيع..
وسماء النجوم..
يطلق..
للهادي..
منايا..
وللساكن..
أمان..
لا يخيب..
يوما..
تلك..
المشاني..
لعبير..
منكم..
جاني
نقش..
في الصخر..
وطبعت..
قلب لعشق..
يعلم ولايدري..
محاكي الهواء..
إنه عسير و...
الحب نار..
يلهب..
في مهجتي..
وانساقه..
له مصانا..
إن عابني..
الوقت..
فما مثناه..
لغايب..
قطع بي..
وزهوره..
متفتحة..
بدور الفل...
في عناذيلها..
من زهرها..
تبتسم..
إني رأيت..
لم نراه..
مقبل..
مساري..
من جناين..
الزهر و..
أيا غذينة العمر..
رحلته ..
تشارف..
المقام..
عيدتني..
بنور..
فاختفاء..
نجمه..
اللامع..
تساقط..
من أطياف...
عبقه..
معطرة..
من الياسمين..
والنرجسي....
أنا وقافي..
الهجاء تسامرني..
تناديني..
من هطوف..
العشق..
يناجيني..
يرتادني..
نسيم..
من منتصف..
الليل كأنه يدعيني..
وأنا لا نردك..
إلى تلك الجهام..
من السماء..
قادم..
يبشرني..
برحاء..
من الأنس..
وليالي تعود..
كدوران الأيام...
أن تقبل بربيع....
احمدعمر اللحوري
المكلا حضرموت


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